दिल ने सीने में कुछ क़रार लिया
जब तुझे ख़ूब सा पुकार लिया
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मंज़िल न मिली कश्मकश-ए-अहल-ए-नज़र में
अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ
बहार-ए-गुलिस्ताँ हम को न पहचाने तअज्जुब है
ज़िंदाँ में आचानक है ये क्या शोर-ए-सलासिल
खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं
ये भी इक रात कट ही जाएगी
साहिल पे क़ैद लाखों सफ़ीनों के वास्ते
नज़र से देख तो साक़ी इक आईना बनाया है
जो तेरी बज़्म से उट्ठा वो इस तरह उट्ठा
नाख़ुदा डूबने वालों की तरफ़ मुड़ के न देख
बढ़ते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद क़दम अज़्म-ए-सफ़र को क्या करूँ
मिट चुके जो भी थे तौबा-शिकनी के अस्बाब