यूँही इंसानों के शहरों में मिला अपना वजूद
किसी वीराने में इक फूल खिला हो जैसे
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Allama Iqbal
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Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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दिल ने सीने में कुछ क़रार लिया
मय-ख़ाना-ए-हस्ती में साक़ी हम दोनों ही मुजरिम हैं शायद
नाख़ुदा डूबने वालों की तरफ़ मुड़ के न देख
बहार-ए-गुलिस्ताँ हम को न पहचाने तअज्जुब है
ये भी इक रात कट ही जाएगी
मिट चुके जो भी थे तौबा-शिकनी के अस्बाब
जो तेरी बज़्म से उट्ठा वो इस तरह उट्ठा
नज़र से देख तो साक़ी इक आईना बनाया है
महव यूँ हो गए अल्फ़ाज़-ए-दुआ वक़्त-ए-दुआ
साहिल पे क़ैद लाखों सफ़ीनों के वास्ते
बढ़ते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद क़दम अज़्म-ए-सफ़र को क्या करूँ