कही किसी से न रूदाद-ए-ज़िंदगी मैं ने
गुज़ार देने की शय थी गुज़ार दी मैं ने
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(734) Peoples Rate This
मंज़िल न मिली कश्मकश-ए-अहल-ए-नज़र में
नाख़ुदा डूबने वालों की तरफ़ मुड़ के न देख
साहिल पे क़ैद लाखों सफ़ीनों के वास्ते
चाहा था ठोकरों में गुज़र जाए ज़िंदगी
डरता रहता हूँ हम-नशीनों में
ज़िंदाँ में आचानक है ये क्या शोर-ए-सलासिल
मिट चुके जो भी थे तौबा-शिकनी के अस्बाब
जो तेरी बज़्म से उट्ठा वो इस तरह उट्ठा
निगाह-ए-मेहर कहाँ की वो बरहमी भी गई
यूँही इंसानों के शहरों में मिला अपना वजूद
वुसअ'त-ए-दामान-ए-दिल को ग़म तुम्हारा मिल गया
अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ