बाहर Poetry (page 22)

क्यूँ मुझ से गुरेज़ाँ है मैं तेरा मुक़द्दर हूँ

असलम महमूद

जब मैं उस के गाँव से बाहर निकला था

असलम कोलसरी

ईद का दिन है सो कमरे में पड़ा हूँ 'असलम'

असलम कोलसरी

यार को दीदा-ए-ख़ूँ-बार से ओझल कर के

असलम कोलसरी

जब मैं उस के गाँव से बाहर निकला था

असलम कोलसरी

दीवारों को दिल से बाहर रखने वाले

असलम बदर

ऐ ज़मिस्ताँ की हवा तेज़ न चल

असलम अंसारी

पूछते क्या हो मिरे तुम दिल-ए-दीवाने से

आसिफ़ुद्दौला

मक़्सूद-अली-'दीवाना'

आसिफ़ रज़ा

सुकूत-ए-शब के हाथों सोंप कर वापस बुलाता है

अशअर नजमी

शहर-बदर

असग़र नदीम सय्यद

जब हम दोनों जुदा हुए थे

असग़र नदीम सय्यद

वाए ग़ुर्बत कि हुए जिस के लिए ख़ाना-ख़राब

आरज़ू लखनवी

यूँ दूर दूर दिल से हो हो के दिल-नशीं भी

आरज़ू लखनवी

तुम्हें क्या काम नालों से तुम्हें क्या काम आहों से

आरज़ू लखनवी

मोहब्बत सिर्फ़ इक जज़्बा नहीं है

अरशद लतीफ़

वा'दा-ख़िलाफ़ कितने हैं ऐ रश्क-ए-माह आप

अरशद अली ख़ान क़लक़

लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में

अरशद अली ख़ान क़लक़

जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर

अरशद अली ख़ान क़लक़

दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है

अरशद अली ख़ान क़लक़

जिंस-ए-मख़लूत हैं और अपने ही आज़ार में हैं

अरशद अब्दुल हमीद

वहाँ मैं नहीं थी

आरिफ़ा शहज़ाद

हमें नज़दीक कब दिल की मोहब्बत खींच लाती है

आरिफ़ शफ़ीक़

फ़सील-ए-ज़ात से बाहर भी देखना है मुझे

आरिफ़ इमाम

हर इक रंज-ओ-ग़म से सुबुक-दोश हो जा

अक़ील नोमानी

बस वही अश्क मिरा हासिल-ए-गिर्या है 'अक़ील'

अक़ील अब्बास जाफ़री

ज़ीस्त करना दर-ए-इदराक से बाहर है अभी

अक़ील अब्बास जाफ़री

बशारत हो कि अब मुझ सा कोई पागल न आएगा

अनवर शऊर

ख़्वाबों को समझौते रास नहीं आते

अनवर सेन रॉय

कैसी कैसी आयतें मस्तूर हैं नुक़्ते के बीच

अनवर मसूद

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