बाज़ार Poetry (page 20)
यादें
अख़्तर-उल-ईमान
तब्दीली
अख़्तर-उल-ईमान
आख़िरी मुलाक़ात
अख़्तर-उल-ईमान
ओ देस से आने वाले बता
अख़्तर शीरानी
ये औरतें
अख़्तर पयामी
जुर्म-ए-हस्ती की सज़ा क्यूँ नहीं देते मुझ को
अख़तर इमाम रिज़वी
तपिश गुलज़ार तक पहुँची लहू दीवार तक आया
अख़्तर हुसैन जाफ़री
तपिश गुलज़ार तक पहुँची लहू दीवार तक आया
अख़्तर हुसैन जाफ़री
ख़ुद-फ़रामोश जो पाया है मुझे दुनिया ने
अख़तर बस्तवी
चाहो तो मिरा दुख मिरा आज़ार न समझो
अख़तर बस्तवी
हर दुकाँ अपनी जगह हैरत-ए-नज़्ज़ारा है
अकबर हैदराबादी
निगह-ए-शौक़ से हुस्न-ए-गुल-ओ-गुलज़ार तो देख
अकबर हैदराबादी
जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा
अकबर हैदराबादी
हाँ यही शहर मिरे ख़्वाबों का गहवारा था
अकबर हैदराबादी
नई तहज़ीब
अकबर इलाहाबादी
बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए
अकबर इलाहाबादी
वही बे-बाकी-ए-उश्शाक़ है दरकार अब भी
अजमल सिराज
सहरा-ए-ला-हुदूद में तिश्ना-लबी की ख़ैर
अजय सहाब
फ़न जो मेआ'र तक नहीं पहुँचा
अजय सहाब
भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें
ऐतबार साजिद
घर की दहलीज़ से बाज़ार में मत आ जाना
ऐतबार साजिद
भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें
ऐतबार साजिद
तू ही इंसाफ़ से कह जिस का ख़फ़ा यार रहे
ऐश देहलवी
पहले तो शहर ऐसा न था
ऐन ताबिश
इक शहर था इक बाग़ था
ऐन ताबिश
आँसुओं के रतजगों से
ऐन ताबिश
जी रहे हैं आफ़ियत में तो हुनर ख़्वाबों का है
ऐन ताबिश
वो तो मुझ में ही निहाँ था मुझे मालूम न था
अहमद निसार
म्यूजियम
अहमद ज़फ़र
शब ढले गुम्बद-ए-असरार में आ जाता है
अहमद रिज़वान
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