भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें
आ मिरे दिल मिरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1085) Peoples Rate This
छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ
किसी को हम से हैं चंद शिकवे किसी को बेहद शिकायतें हैं
फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है
हम तिरे ख़्वाबों की जन्नत से निकल कर आ गए
ग़ज़ल फ़ज़ा भी ढूँडती है अपने ख़ास रंग की
मुझ से मुख़्लिस था न वाक़िफ़ मिरे जज़्बात से था
किसे पाने की ख़्वाहिश है कि 'साजिद'
रिहा कर दे क़फ़स की क़ैद से घायल परिंदे को
जिस को हम ने चाहा था वो कहीं नहीं इस मंज़र में
बंद दरीचे सूनी गलियाँ अन-देखे अनजाने लोग
पहले ग़म-ए-फ़ुर्क़त के ये तेवर तो नहीं थे
फूलों में वो ख़ुशबू वो सबाहत नहीं आई