किसे पाने की ख़्वाहिश है कि 'साजिद'
मैं रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को खो रहा हूँ
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फूलों में वो ख़ुशबू वो सबाहत नहीं आई
बरसों ब'अद हमें देखा तो पहरों उस ने बात न की
मुहताज हम-सफ़र की मसाफ़त न थी मिरी
छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ
कैसे कहीं कि जान से प्यारा नहीं रहा
धड़कन धड़कन यादों की बारात अकेला कमरा
गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर
तुम्हें ख़याल-ए-ज़ात है शुऊर-ए-ज़ात ही नहीं
डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए
तअल्लुक़ किर्चियों की शक्ल में बिखरा तो है फिर भी
कहा तख़्लीक़-ए-फ़न बोले बहुत दुश्वार तो होगी
ये क्या हालत बना रक्खी है ये आसार कैसे हैं