जुदाइयों की ख़लिश उस ने भी न ज़ाहिर की
छुपाए अपने ग़म ओ इज़्तिराब मैं ने भी
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(950) Peoples Rate This
मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द
दिए मुंडेर प रख आते हैं हम हर शाम न जाने क्यूँ
बरसों ब'अद हमें देखा तो पहरों उस ने बात न की
कभी तू ने ख़ुद भी सोचा कि ये प्यास है तो क्यूँ है
मुख़्तलिफ़ अपनी कहानी है ज़माने भर से
आँखों से अयाँ ज़ख़्म की गहराई तो अब है
शहर-ए-हवा में जलते रहना अंदेशों की चौखट पर
ये ठीक है कि बहुत वहशतें भी ठीक नहीं
मेरी पोशाक तो पहचान नहीं है मेरी
इतना पसपा न हो दीवार से लग जाएगा
मिरी रूह में जो उतर सकें वो मोहब्बतें मुझे चाहिएँ
तअल्लुक़ात में गहराइयाँ तो अच्छी हैं