मेरी पोशाक तो पहचान नहीं है मेरी
दिल में भी झाँक मिरी ज़ाहिरी हालत पे न जा
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किसी को हम से हैं चंद शिकवे किसी को बेहद शिकायतें हैं
मुख़्तलिफ़ अपनी कहानी है ज़माने भर से
तुम्हें ख़याल-ए-ज़ात है शुऊर-ए-ज़ात ही नहीं
मुझे ऐसा लुत्फ़ अता किया कि जो हिज्र था न विसाल था
फूलों में वो ख़ुशबू वो सबाहत नहीं आई
भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें
किसी को साल-ए-नौ की क्या मुबारकबाद दी जाए
आने वाली थी ख़िज़ाँ मैदान ख़ाली कर दिया
बंदे ज़मीन और आसमाँ सरमा की शब कहानियाँ
शहर-ए-हवा में जलते रहना अंदेशों की चौखट पर
फ़त्ह का ग़म