डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए
एक लड़की ने मिरा दीवान ख़ाली कर दिया
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ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा
धड़कन धड़कन यादों की बारात अकेला कमरा
तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मिरे दिल से बोझ उतार दो
मिरी रूह में जो उतर सकें वो मोहब्बतें मुझे चाहिएँ
मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द
कहा तख़्लीक़-ए-फ़न बोले बहुत दुश्वार तो होगी
ग़ज़ल फ़ज़ा भी ढूँडती है अपने ख़ास रंग की
तअल्लुक़ किर्चियों की शक्ल में बिखरा तो है फिर भी
मुझे वो कुंज-ए-तन्हाई से आख़िर कब निकालेगा
बरसों ब'अद हमें देखा तो पहरों उस ने बात न की
दिए मुंडेर प रख आते हैं हम हर शाम न जाने क्यूँ
मैं तकिए पर सितारे बो हा हूँ