गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर
इक नई बात निकल आती है हर बात के साथ
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इतना पसपा न हो दीवार से लग जाएगा
फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है
बंदे ज़मीन और आसमाँ सरमा की शब कहानियाँ
छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ
आँखों से अयाँ ज़ख़्म की गहराई तो अब है
रस्ते का इंतिख़ाब ज़रूरी सा हो गया
फूल थे रंग थे लम्हों की सबाहत हम थे
दिए मुंडेर प रख आते हैं हम हर शाम न जाने क्यूँ
तिरे जैसा मेरा भी हाल था न सुकून था न क़रार था
धड़कन धड़कन यादों की बारात अकेला कमरा
दिल हैं यूँ मुज़्तरिब मकानों में
कहा तख़्लीक़-ए-फ़न बोले बहुत दुश्वार तो होगी