दीपक Poetry (page 15)

जो दिल में हैं दाग़ जल रहे हैं

सलीम अहमद

जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई

सलीम अहमद

जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में

सलीम अहमद

बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे

सलीम अहमद

रह-ए-हयात चमक उठ्ठे कहकशाँ की तरह

सलाम संदेलवी

था ख़्वाब में ख़याल को तुझ से मुआमला

सलाहुद्दीन परवेज़

यही सुनते आए हैं हम-नशीं कभी अहद-ए-शौक़-ए-कमाल में

सज्जाद बाक़र रिज़वी

कार-ए-वहशत में भी मजबूर है इंसाँ अब तक

सज्जाद बाक़र रिज़वी

तो यूँ कहो ना दिलों का शिकार करना है

सज्जाद बाबर

तख़्लीक़ शेर

साजिदा ज़ैदी

कब से महव-ए-सफ़र हो

साजिदा ज़ैदी

किश्त-ए-वीराँ की तरह तिश्ना रही रात मिरी

साजिदा ज़ैदी

हर आइने में तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल आते हैं

साजिद अमजद

हमें ख़बर है वो मेहमान एक रात का है

सैफ़ुद्दीन सैफ़

अश्कों में क़लम डुबो रहा है

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

ढलक के गिरने से ये दिल मिरा डरा हुआ है

सईद इक़बाल सादी

मेरी मंज़िल भी आसमान में है

साहिर शेवी

अँधेरी शब में भी तामीर-ए-आशियाँ न रुके

साहिर लुधियानवी

शिकस्त-ए-ज़िंदाँ

साहिर लुधियानवी

नूर-जहाँ के मज़ार पर

साहिर लुधियानवी

ख़ून फिर ख़ून है

साहिर लुधियानवी

टालने से वक़्त क्या टलता रहा

साहिर होशियारपुरी

सर-ए-अर्श-ए-बरीं है ज़ेर-ए-पा-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना

साहिर देहल्वी

गोया ज़बान हाल थी 'साहिर' ख़मोश था

साहिर देहल्वी

बुत-परस्ती के सनम-ख़ाने का आसार न तोड़

साहिर देहल्वी

बुझ रहे हैं चराग़-ए-दैर-ओ-हरम

सहाब क़ज़लबाश

आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़

साग़र सिद्दीक़ी

महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया

साग़र सिद्दीक़ी

जज़्बा-ए-सोज़-ए-तलब को बे-कराँ करते चलो

साग़र सिद्दीक़ी

रोटी कपड़ा और मकान

साग़र ख़य्यामी

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