तो यूँ कहो ना दिलों का शिकार करना है
तो यूँ कहो ना दिलों का शिकार करना है
हवा के साथ सफ़र इख़्तियार करना है
बजा कि ज़ख़्म न गिनवाएंगे मगर जानाँ
वो फूल कितने हैं जिन का शुमार करना है
ग़ुरूर-ओ-तमकनत-ओ-जहल से निभा लेना
फ़राज़-ए-कोह को गोया ग़ुबार करना है
वो बद-सरिशत परिंदा है उस का मस्लक ही
जो पक गए वो समर दाग़-दार करना है
उसे भी रात गए बे-चराग़ होना है
हमें भी चौक में कुछ इंतिज़ार करना है
वो एक अश्क जो मंदूब दिल का कहलाए
वो एक झील जिसे आबशार करना है
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