रह-ए-हयात चमक उठ्ठे कहकशाँ की तरह
अगर चराग़-ए-मोहब्बत कोई जला के चले
Habib Jalib
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ख़ुशी के फूल खिले थे तुम्हारे साथ कभी
शबनम ने रो के जी ज़रा हल्का तो कर लिया
गुल-ओ-ग़ुंचा अस्ल में हैं तिरी गुफ़्तुगू की शक्लें
तीरा-ओ-तार फ़ज़ाओं में जिया हूँ अब तक
बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ
है तिश्ना-लबी लेकिन हम क्यूँ उसे ज़हमत दें
गुलों के रूप में बिखरे हैं हर तरफ़ काँटे
मता-ए-ग़म मिरे अश्कों ही तक नहीं महदूद
दिल की धड़कन भी है उन को नागवार
ताबानी-ए-रुख़ ले कर तुम सामने जब आए
हमेशा दूर के जल्वे फ़रेब देते हैं