तीरा-ओ-तार फ़ज़ाओं में जिया हूँ अब तक
निकहत-ओ-नूर के अय्याम की हसरत ही रही
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बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ
गुलों के रूप में बिखरे हैं हर तरफ़ काँटे
आए जो चंद तिनके क़फ़स में सबा के साथ
हमेशा दूर के जल्वे फ़रेब देते हैं
बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द
है तिश्ना-लबी लेकिन हम क्यूँ उसे ज़हमत दें
ये तो मालूम है उन तक न सदा पहुँचेगी
मता-ए-ग़म मिरे अश्कों ही तक नहीं महदूद
बहुत उम्मीद थी मंज़िल पे जा कर चैन पाएँगे
ख़ुशी के फूल खिले थे तुम्हारे साथ कभी
दिल की धड़कन भी है उन को नागवार
क्या इसी को बहार कहते हैं