दीपक Poetry (page 26)

भले बुझाने की ज़िद पे हवा उड़ी हुई है

फ़राज़ महमूद फ़ारिज़

कभी न सोचा था मैं ने उड़ान भरते हुए

फ़राग़ रोहवी

बे-अजल काम न अपना किसी उनवाँ निकला

फ़ानी बदायुनी

मिरे दाग़-ए-दिल वो चराग़ हैं नहीं निस्बतें जिन्हें शाम से

फ़ना बुलंदशहरी

किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

इन में लहू जला हो हमारा कि जान ओ दिल

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तन्हाई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मौज़ू-ए-सुख़न

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इक़बाल

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दर्द आएगा दबे पाँव

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अगस्त-1952

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जमेगी कैसे बिसात-ए-याराँ कि शीशा ओ जाम बुझ गए हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

और तो कुछ नहीं किया होगा

फ़ैसल फेहमी

मुझ को ये फ़िक्र कब है कि साया कहाँ गया

फ़ैसल अजमी

मौत की सम्त जान चलती रही

फ़हमी बदायूनी

कोई मिलता नहीं ख़ुदा की तरह

फ़हमी बदायूनी

उसी ने चाँद के पहलू में इक चराग़ रखा

फ़हीम शनास काज़मी

राहदारी में गूँजती नज़्म

फ़हीम शनास काज़मी

देर हो गई

फ़हीम शनास काज़मी

बदन को ख़ाक किया और लहू को आब किया

फ़हीम शनास काज़मी

इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे

एज़ाज़ अहमद आज़र

उजाले तेल छिड़कने लगे उजालों पर

एज़ाज़ अफ़ज़ल

उजाले तेल छिड़कने लगे उजालों पर

एज़ाज़ अफ़ज़ल

चढ़ते सूरज की मुदारात से पहले 'एजाज़'

एजाज़ वारसी

हवा के वास्ते इक काम छोड़ आया हूँ

एजाज़ रहमानी

ख़ाशाक से ख़िज़ाँ में रहा नाम बाग़ का

एजाज़ गुल

इतना तिलिस्म याद के चक़माक़ में रहा

एजाज़ गुल

हर्फ़

एजाज़ फ़ारूक़ी

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