दीपक Poetry (page 28)

रामायण का एक सीन

चकबस्त ब्रिज नारायण

मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले

चकबस्त ब्रिज नारायण

ख़ाक-ए-हिंद

चकबस्त ब्रिज नारायण

हुब्ब-ए-क़ौमी

चकबस्त ब्रिज नारायण

मिरी रात मेरा चराग़ मेरी किताब दे

बुशरा एजाज़

तुझ से तसव्वुरात में ऐ जान-ए-आरज़ू

ब्रहमा नन्द जलीस

जब चौदहवीं का चाँद निकलता दिखाई दे

बिमल कृष्ण अश्क

आँखों से कभी कूचा-ए-जानाँ नहीं देखा

बिल्क़ीस बेगम

तमाम लाला ओ गुल के चराग़ रौशन हैं

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

मिरी हथेली में लिक्खा हुआ दिखाई दे

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

कब इक मक़ाम पे रुकती है सर-फिरी है हवा

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

ज़मीं नई थी अनासिर की ख़ू बदलती थी

बिलाल अहमद

इतनी सी बात रात पता भी नहीं लगी

भारत भूषण पन्त

मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी

भारत भूषण पन्त

अंधेरा मिटता नहीं है मिटाना पड़ता है

भारत भूषण पन्त

न मिला तिरा पता तो मुझे लोग क्या कहेंगे

बेताब लखनवी

यूँ तो जो चाहे यहाँ साहब-ए-महफ़िल हो जाए

बहज़ाद लखनवी

रहने दे रतजगों में परेशाँ मज़ीद उसे

बेदिल हैदरी

काबे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए

बेदम शाह वारसी

हम मय-कदे से मर के भी बाहर न जाएँगे

बेदम शाह वारसी

गुल का किया जो चाक गरेबाँ बहार ने

बेदम शाह वारसी

रौनक़ फ़रोग़-ए-दर्द से कुछ अंजुमन में है

बेबाक भोजपुरी

ग़म-ए-आफ़ाक़ में आरिफ़ अगर करवट बदलता है

बेबाक भोजपुरी

सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ

बयान मेरठी

मिस्ल-ए-हुबाब-ए-बहर न इतना उछल के चल

बयान मेरठी

जो ज़मीं पर फ़राग़ रखते हैं

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

ज़ब्त-ए-ग़म कर भी लिया तो क्या किया

बासित भोपाली

किसे ख़बर है मैं दिल से कि जाँ से गुज़रूँगा

बशीर सैफ़ी

उस की आँखों को ग़ौर से देखो

बशीर बद्र

नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं

बशीर बद्र

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