नदी Poetry (page 22)

इक आस का धुँदला साया है इक पास का तपता सहरा है

सहर अंसारी

कैसे कैसे मंज़र मेरी आँखों में आ जाते हैं

सग़ीर अालम

तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ

साग़र सिद्दीक़ी

सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया

साग़र निज़ामी

क्यूँ दिल तिरे ख़याल का हामिल नहीं रहा

साग़र ख़य्यामी

पैमाना तिरे लब हैं आँखें तिरी मय-ख़ाना

सागर जलालाबादी

ग़ुरूब होते हुए दो सितारे आँखों में

सफ़दर सिद्दीक़ रज़ी

सूने ही रहे हिज्र के सहरा उसे कहना

सफ़दर सलीम सियाल

तिनका

सईदुद्दीन

गाता हुआ पत्थर

सईदुद्दीन

अंधा और दूरबीन

सईदुद्दीन

तुम अपने दरिया का रोना रोने आ जाते हो

सईद क़ैस

इंतिज़ार

सईद क़ैस

सोने के दिल मिट्टी के घर पीछे छोड़ आए हैं

सईद क़ैस

वरक़ वरक़ से नया इक जवाब माँगूँ मैं

सईद नक़वी

जो तिरे ख़ित्ता-ए-बे-आब की ख़्वाहिश न बना

सईद अहमद

मआनी की तलाश में मरते लफ़्ज़

सईद अहमद

अधूरी नस्ल का पूरा सच

सईद अहमद

शोरिश-ए-वक़्त हुई वक़्त की रफ़्तार में गुम

सईद अहमद

इक बर्ग-ए-ख़ुश्क से गुल-ए-ताज़ा तक आ गए

सईद अहमद

नहीं मा'लूम जीने का हुनर कैसा रखा है

सादिया सफ़दर सादी

अपनी आँखों से तो दरिया भी सराब-आसा मिले

सादिक़ नसीम

उन्हें कह दो

सादिक़

वो पीपल के तले टूटी हुई मेहराब का मंज़र

सदफ़ जाफ़री

मिरे ध्यान में है इक महल कहीं चौबारों का

साबिर वसीम

खिले हुए हैं फूल सितारे दरिया के उस पार

साबिर वसीम

करता है कोई और भी गिर्या मिरे दिल में

साबिर वसीम

गुल ओ महताब लिखना चाहता हूँ

साबिर वसीम

इक शोर समेटो जीवन भर और चुप दरिया में उतर जाओ

साबिर वसीम

इक सफ़र पर उसे भेज कर आ गए

साबिर वसीम

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