नदी Poetry (page 20)

दिल भर आए और अब्र-ए-दीदा में पानी न हो

सलीम शाहिद

बुझ गए शो'ले धुआँ आँखों को पानी दे गया

सलीम शाहिद

अब्र सरका चाँद की चेहरा-नुमाई हो गई

सलीम शाहिद

अब शहर की और दश्त की है एक कहानी

सलीम शाहिद

तू दरिया है और ठहरने वाला मैं

सलीम मुहीउद्दीन

अब जो लहर है पल भर बाद नहीं होगी यानी

सलीम कौसर

तू सूरज है तेरी तरफ़ देखा नहीं जा सकता

सलीम कौसर

तारे जो कभी अश्क-फ़िशानी से निकलते

सलीम कौसर

लौ को छूने की हवस में एक चेहरा जल गया

सलीम कौसर

कोई याद ही रख़्त-ए-सफ़र ठहरे कोई राहगुज़र अनजानी हो

सलीम कौसर

कोई सच्चे ख़्वाब दिखाता है पर जाने कौन दिखाता है

सलीम कौसर

डूबने वाले भी तन्हा थे तन्हा देखने वाले थे

सलीम कौसर

सहमे नहीफ़ दरिया के धारे की बात कर

सलीम फ़िगार

खो दिए हैं चाँद कितने इक सितारा माँग कर

सलीम फ़िगार

किस ने कहा कि मुझ को ये दुनिया नहीं पसंद

सलीम फ़राज़

अभी मौजूद थी लेकिन अभी गुम हो गई है

सलीम फ़राज़

आँख के कुंज में इक दश्त-ए-तमन्ना ले कर

सलीम बेताब

मेरा शोर-ए-ग़र्क़ाबी ख़त्म हो गया आख़िर

सलीम अहमद

चली है मौज में काग़ज़ की कश्ती

सलीम अहमद

वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे

सलीम अहमद

तिरी जानिब से दिल में वसवसे हैं

सलीम अहमद

नया मज़मूँ किताब-ए-ज़ीस्त का हूँ

सलीम अहमद

मिला जो काम ग़म-ए-मो'तबर बनाने का

सलीम अहमद

जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई

सलीम अहमद

दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए

सलीम अहमद

बैठे हैं सुनहरी कश्ती में और सामने नीला पानी है

सलीम अहमद

अहल-ए-दिल ने इश्क़ में चाहा था जैसा हो गया

सलीम अहमद

आज तो नहीं मिलता ओर-छोर दरिया का

सलीम अहमद

मज़दूर लड़की

सलाम मछली शहरी

आवाज़ों से जिस्म हुआ नम

सलाहुद्दीन महमूद

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