दिन Poetry (page 4)

महमूद दरवेश के लिए ख़त

ज़ीशान साहिल

ख़ुद-कुशी

ज़ीशान साहिल

ख़त

ज़ीशान साहिल

जनरल-साहिब की नाक

ज़ीशान साहिल

जवाहर-लाल यूनवर्सिटी के तलबा के लिए

ज़ीशान साहिल

हवा

ज़ीशान साहिल

हल्की और भारी चीज़ें

ज़ीशान साहिल

हद

ज़ीशान साहिल

घूमते हुए ग्लोब पर

ज़ीशान साहिल

दूसरा आसमान

ज़ीशान साहिल

दुल्हन

ज़ीशान साहिल

दहशत-गर्द शायर

ज़ीशान साहिल

बेहतरीन दिन

ज़ीशान साहिल

36

ज़ीशान साहिल

27

ज़ीशान साहिल

14

ज़ीशान साहिल

इश्क़ की दीवानगी मिट जाएगी

ज़ीशान साहिल

दिल धुआँ देने लगे आँख पिघलने लग जाए

ज़ीशान अतहर

क्या मिला क़ैस को गर्द-ए-रह-ए-सहरा हो कर

ज़ेबा

किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं

ज़ेबा

जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ

ज़ेबा

मरने का सुख जीने की आसानी दे

ज़ेब ग़ौरी

गो मिरी हर साँस इक पेगाज़-ए-सरमस्ती रही

ज़ेब ग़ौरी

तमन्ना है किसी की तेग़ हो और अपनी गर्दन हो

ज़रीफ़ लखनवी

क़ैस कहता था यही फ़िक्र है दिन-रात मुझे

ज़रीफ़ लखनवी

अमीरों के बुरे अतवार को जो ठीक समझे है

ज़मीर अतरौलवी

तिरे बग़ैर कटे दिन न शब गुज़रती है

ज़की तारिक़

इताब-ओ-क़हर का हर इक निशान बोलेगा

ज़की तारिक़

आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया

ज़की काकोरवी

उभरता चाँद सियह रात के परों में था

ज़काउद्दीन शायाँ

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