दुश्मन Poetry (page 21)

इस क़दर ग़म है कि इज़हार नहीं कर सकते

अय्यूब ख़ावर

घर दरवाज़े से दूरी पर सात समुंदर बीच

अय्यूब ख़ावर

ख़्वाहिशें दुनिया की बार-ए-दोश-ओ-गर्दन हो गईं

औज लखनवी

कितना मुश्किल है

अतीक़ुल्लाह

बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं था

अतीक़ुल्लाह

बहुत छोटे हैं मुझ से मेरे दुश्मन

अतहर नफ़ीस

सुकूत-ए-शब से इक नग़्मा सुना है

अतहर नफ़ीस

सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं

अतहर नफ़ीस

मिरी मुश्किल अगर आसाँ बना देते तो अच्छा था

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

मुझे जाना है इक दिन

असरार-उल-हक़ मजाज़

हमारा झंडा

असरार-उल-हक़ मजाज़

दिल्ली से वापसी

असरार-उल-हक़ मजाज़

आहंग-ए-नौ

असरार-उल-हक़ मजाज़

तमाम खेल-तमाशों के दरमियान वही

असलम इमादी

कोशिश है गर उस की कि परेशान करेगा

असलम इमादी

वक़्त बे-वक़्त ये पोशाक मिरी ताक में है

आसिम वास्ती

मिस्र फ़िरऔन की तहवील में आया हुआ है

आसिम वास्ती

हादसे ज़ेर-ओ-बम पेच-ओ-ख़म राह देख

अशफ़ाक़ रहबर

मेरे ही पाँव मिरे सब से बड़े दुश्मन हैं

असग़र मेहदी होश

इतना एहसास तो दे पालने वाले मुझ को

असग़र मेहदी होश

मजाज़ कैसा कहाँ हक़ीक़त अभी तुझे कुछ ख़बर नहीं है

असग़र गोंडवी

आह से जब दिल में डूबे तीर उभारे जाएँगे

असर लखनवी

मिरी अना मिरे दुश्मन को ताज़ियाना है

असअ'द बदायुनी

गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा

असअ'द बदायुनी

कम न थी तेग़ से अदा-ए-ख़िराम

आरज़ू लखनवी

मीर-ए-महफ़िल न हुए गर्मी-ए-महफ़िल तो हुए

आरज़ू लखनवी

क्यूँ किसी रह-रौ से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता

आरज़ू लखनवी

आने में झिझक मिलने में हया तुम और कहीं हम और कहीं

आरज़ू लखनवी

यक़ीन-ए-सुब्ह-ए-चमन है कितना शुऊर-ए-अब्र-ए-बहार क्या है

अर्शी भोपाली

सब रंग वही ढंग वही नाज़ वही थे

अरशदुल क़ादरी

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