दुश्मन Poetry (page 20)

उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं

बेकल उत्साही

तुम ख़फ़ा हो तो अच्छा ख़फ़ा हो

बेदम शाह वारसी

सीने में दिल है दिल में दाग़ दाग़ में सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़

बेदम शाह वारसी

शादी ओ अलम सब से हासिल है सुबुकदोशी

बेदम शाह वारसी

न सुनो मेरे नाले हैं दर्द-भरे दार-ओ-असरे आह-ए-सहरे

बेदम शाह वारसी

मेरे रोने पर किसी की चश्म गिर्यां हाए हाए

बासित भोपाली

सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है

बशीर बद्र

फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है

बशीर बद्र

पता नहीं वो कौन था

बशर नवाज़

हर नई रुत में नया होता है मंज़र मेरा

बशर नवाज़

हिन्द के जाँ-बाज़ सिपाही

बर्क़ देहलवी

दोस्त हर ऐब छुपा लेते हैं

बाक़ी सिद्दीक़ी

वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं

बाक़ी सिद्दीक़ी

ऐ इश्क़ तू हर-चंद मिरा दुश्मन-ए-जाँ हो

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

मुझे दुश्मन से अपने इश्क़ सा है

बाक़र मेहदी

बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है

बाक़र मेहदी

मैं, एक और मैं

बलराज कोमल

गिर्या-ए-सगाँ

बलराज कोमल

लड़ा कर आँख उस से हम ने दुश्मन कर लिया अपना

ज़फ़र

न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है

ज़फ़र

जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं

ज़फ़र

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी

ज़फ़र

मैं ने चुप के अंधेरे में ख़ुद को रखा इक फ़ज़ा के लिए

अज़्म बहज़ाद

सर-ए-सहरा-ए-जाँ हम चाक-दामानी भी करते हैं

अज़ीज़ नबील

फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

फूल जो दिल की रहगुज़र में है

अज़ीज़ अन्सारी

बनाए ज़ेहन परिंदों की ये क़तार मिरा

अज़हर इनायती

लोगो हम तो एक ही सूरत में हथियार उठाते हैं

अज़हर अदीब

इस लिए मैं ने मुहाफ़िज़ नहीं रक्खे अपने

अज़हर अदीब

लाई न सबा बू-ए-चमन अब के बरस भी

अज़ीम मुर्तज़ा

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