लोगो हम तो एक ही सूरत में हथियार उठाते हैं
जब दुश्मन हो अपने जैसा ख़ुद-सर भी और हम-सर भी
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
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Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Wasi Shah
Parveen Shakir
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इस लिए मैं ने मुहाफ़िज़ नहीं रक्खे अपने
सुब्ह कैसी है वहाँ शाम की रंगत क्या है
कभी उस से दुआ की खेतियाँ सैराब करना
हम ने घर की सलामती के लिए
समझ में आ तो सकती है सबा की गुफ़्तुगू भी
मेरे हरे वजूद से पहचान उस की थी
मैं उस का नाम ले बैठा था इक दिन
ऐ शहर-ए-सितम छोड़ के जाते हुए लोगो
रौशनी हस्ब-ए-ज़रूरत भी नहीं माँगते हम
सारे मंज़र में समाया हुआ लगता है मुझे
लहजे और आवाज़ में रक्खा जाता है