मेरे हरे वजूद से पहचान उस की थी
बे-चेहरा हो गया है वो जब से झड़ा हूँ मैं
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Gulzar
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(661) Peoples Rate This
रौशनी हस्ब-ए-ज़रूरत भी नहीं माँगते हम
अपना जैसा भी हाल रक्खा है
क्या तेरा क्या मेरा ख़्वाब
उसी ने सब से पहले हार मानी
लोगो हम तो एक ही सूरत में हथियार उठाते हैं
मैं उस का नाम ले बैठा था इक दिन
दर-ओ-दीवार से डर लग रहा था
बे-ख़्वाबी कब छुप सकती है काजल से भी
तुम उस की बातों में न आना
दश्त-ए-शब में पता ही नहीं चल सका
शब भर आँख में भीगा था