दश्त-ए-शब में पता ही नहीं चल सका
अपनी आँखें गईं या सितारे गए
Anwar Masood
Jaun Eliya
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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मेरे हरे वजूद से पहचान उस की थी
अपना जैसा भी हाल रक्खा है
उसी ने सब से पहले हार मानी
मैं जिस लम्हे को ज़िंदा कर रहा हूँ मुद्दतों से
जब भी चाहूँ तेरा चेहरा सोच सकूँ
जो ज़िंदगी की माँग सजाते रहे सदा
समझ में आ तो सकती है सबा की गुफ़्तुगू भी
क़ज़ा का तीर था कोई कमान से निकल गया
बे-ख़्वाबी कब छुप सकती है काजल से भी
लहजे और आवाज़ में रक्खा जाता है
सुब्ह कैसी है वहाँ शाम की रंगत क्या है
कभी उस से दुआ की खेतियाँ सैराब करना