बे-ख़्वाबी कब छुप सकती है काजल से भी
जागने वाली आँख में लाली रह जाती है
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(722) Peoples Rate This
सुब्ह कैसी है वहाँ शाम की रंगत क्या है
क्या तेरा क्या मेरा ख़्वाब
मैं जिस लम्हे को ज़िंदा कर रहा हूँ मुद्दतों से
कल परदेस में याद आएगी ध्यान में रख
उसी ने सब से पहले हार मानी
हवा को ज़िद कि उड़ाएगी धूल हर सूरत
सारे मंज़र में समाया हुआ लगता है मुझे
मेरे हरे वजूद से पहचान उस की थी
तुम उस की बातों में न आना
आज निकले याद की ज़म्बील से
दिल प्यासा और आँख सवाली रह जाती है