उसी ने सब से पहले हार मानी
वही सब से दिलावर लग रहा था
Anwar Masood
Gulzar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(724) Peoples Rate This
जगह फूलों की रखते हैं घना साया बनाते हैं
अपना जैसा भी हाल रक्खा है
शब भर आँख में भीगा था
मैं उस का नाम ले बैठा था इक दिन
सुब्ह कैसी है वहाँ शाम की रंगत क्या है
वो शब के साए में फ़स्ल-ए-नशात काटते हैं
लहजे और आवाज़ में रक्खा जाता है
ये शख़्स जो तुझे आधा दिखाई देता है
निकल आया हूँ आगे उस जगह से
दश्त-ए-शब में पता ही नहीं चल सका
हम ने घर की सलामती के लिए
इस लिए मैं ने मुहाफ़िज़ नहीं रक्खे अपने