फ़लक Poetry (page 17)

चुपके से नाम ले के तुम्हारा कभी कभी

असर लखनवी

तलब की राहों में सारे आलम नए नए से

असअ'द बदायुनी

वो पलट के जल्द न आएँगे ये अयाँ है तर्ज़-ए-ख़िराम से

आरज़ू लखनवी

फ़ज़ा महदूद कब है ऐ दिल-ए-वहशी फ़लक कैसा

आरज़ू लखनवी

फेर जो पड़ना था क़िस्मत में वो हस्ब-ए-मामूल पड़ा

आरज़ू लखनवी

किस मस्त अदा से आँख लड़ी मतवाला बना लहरा के गिरा

आरज़ू लखनवी

हम आज खाएँगे इक तीर इम्तिहाँ के लिए

आरज़ू लखनवी

अयाँ है बे-रुख़ी चितवन से और ग़ुस्सा निगाहों से

आरज़ू लखनवी

कभी जो उस की तमन्ना ज़रा बिफर जाए

अरशद कमाल

ज़मीन पाँव के नीचे से सरकी जाती है

अरशद अली ख़ान क़लक़

तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है

अरशद अली ख़ान क़लक़

परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता है

अरशद अली ख़ान क़लक़

नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से

अरशद अली ख़ान क़लक़

इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली

अरशद अली ख़ान क़लक़

हम ने एहसान असीरी का न बर्बाद किया

अरशद अली ख़ान क़लक़

आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब

अरशद अली ख़ान क़लक़

मिरे ख़ेमे ख़स्ता-हाल में हैं मिरे रस्ते धुँद के जाल में हैं

अरशद अब्दुल हमीद

कोई भी शय हो मियाँ जान से प्यारी किसे है

अरशद अब्दुल हमीद

है टोंक अर्ज़-ए-पाक वहीं से उठेंगे हम

अरशद अब्दुल हमीद

दरवाज़ा तिरे शहर का वा चाहिए मुझ को

अर्श सिद्दीक़ी

तुम्हें प्यार है, तो यक़ीन दो,

आरिफ़ इशतियाक़

मुझे ब-फ़ैज़-ए-तफ़क्कुर हुआ है ये इदराक

आरिफ़ फ़रहाद

ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

हो गए दिन जिन्हें भुलाए हुए

अनवर शऊर

और न दर-ब-दर फिरा और न आज़मा मुझे

अनवर शऊर

ज़मीं का रिज़्क़ हूँ लेकिन नज़र फ़लक पर है

अनवर सदीद

सियाहियों का नगर रौशनी से अट जाए

अनवर सदीद

ऐ काश हमारी क़िस्मत में ऐसी भी कोई शाम आ जाए

अनवर मिर्ज़ापुरी

इस वास्ते दामन चाक किया शायद ये जुनूँ काम आ जाए

अनवर मिर्ज़ापुरी

इस इब्तिदा की सलीक़े से इंतिहा करते

अनवर मसूद

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