फ़लक Poetry (page 15)

दिलकशी नाम को भी आलम-ए-इम्काँ में नहीं

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

मिरी बे-ख़ुदी है वो बे-ख़ुदी कहीं ख़ुदी का वहम-ओ-गुमाँ नहीं

चकबस्त ब्रिज नारायण

ऐ 'जलीस' अब इक तुम्हीं में आदमियत हो तो हो

ब्रहमा नन्द जलीस

ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी

बिर्ज लाल रअना

नज़्म

बिमल कृष्ण अश्क

शफ़क़ से बाम-ए-फ़लक लाला-गूँ भी होता है

बिलाल अहमद

आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया

भारतेंदु हरिश्चंद्र

तेशे से कोई काम न फ़रहाद से हुआ

बेख़ुद देहलवी

आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप

बेख़ुद देहलवी

रक़ीबों का मुझ से गिला हो रहा है

बेखुद बदायुनी

क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है

बेदम शाह वारसी

मुझे जल्वों की उस के तमीज़ हो क्या मेरे होश-ओ-हवास बचा ही नहीं

बेदम शाह वारसी

ख़ंजर तलाश करता है

बेबाक भोजपुरी

नैरंगियाँ फ़लक की जभी हैं कि हों बहम

बयान मेरठी

ये मैं कहूँगा फ़लक पे जा कर ज़मीं से आया हूँ तंग आ कर

बयान मेरठी

वो दरिया-बार अश्कों की झड़ी है

बयान मेरठी

खुला है जल्वा-ए-पिन्हाँ से अज़-बस चाक वहशत का

बयान मेरठी

ये ख़ूब-रू न छुरी ने कटार रखते हैं

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

किसी के नक़्श-ए-क़दम का निशाँ नहीं मिलता

बासित भोपाली

ज़र्रों में कुनमुनाती हुई काएनात हूँ

बशीर बद्र

पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

मत तंग हो करे जो फ़लक तुझ को तंग-दस्त

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

मत तंग हो करे जो फ़लक तुझ को तंग-दस्त

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

कल मय-कदे की जानिब आहंग-ए-मोहतसिब है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

जो चश्म-ओ-दिल से चढ़ा दूँ नाले ब-आब-ए-अव्वल दोवम-ब-आतिश

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

दस्त-ए-नासेह जो मिरे जेब को इस बार लगा

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

चश्म-ए-तर जाम दिल-ए-बादा-कशाँ है शीशा

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है

बाक़र मेहदी

कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना

बख़्श लाइलपूरी

टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच

ज़फ़र

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