नैरंगियाँ फ़लक की जभी हैं कि हों बहम
काली घटा सफ़ेद प्याले शराब-ए-सुर्ख़
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जो मकतब-ए-ईजाद में दाख़िल होगा
शैख़ के माथे पे मिट्टी बरहमन के बर में बुत
ये तासीर मोहब्बत है कि टपका
असरार जहाँ लतीफ़ा-ए-ग़ैबी हैं
आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी
पीरी की सपेदी है कि मरता हूँ मैं
लहू टपका किसी की आरज़ू से
ग़म्ज़ा-ए-मा'शूक़ मुश्ताक़ों को दिखलाती है तेग़
ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा
सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ
सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था
वो दरिया-बार अश्कों की झड़ी है