असरार जहाँ लतीफ़ा-ए-ग़ैबी हैं
सब आलम-ए-तहत-ओ-फ़ौक़ तरकीबी हैं
वाँ बारिश-ओ-इमसाक यहाँ पैदा-वार
ये चर्ख़-ओ-ज़मीं दोनों मियाँ-बीबी हैं
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(705) Peoples Rate This
वो हटे आँख के आगे से तो बस सूरत-ए-अक्स
ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा
हाँ जेहल तुम्हीं से रंग लाया फिर क्यूँ
ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स
आवारा-ए-हिर्स दर-ब-दर फिरता है
बेदार नहीं कोई जहाँ ख़्वाब में है
ये तासीर मोहब्बत है कि टपका
खुला है जल्वा-ए-पिन्हाँ से अज़-बस चाक वहशत का
अदाएँ ता-अबद बिखरी पड़ी हैं
नैरंगियाँ फ़लक की जभी हैं कि हों बहम
बदलने रंग सिखलाए जहाँ को