आवारा-ए-हिर्स दर-ब-दर फिरता है
हम-संग-ए-फ़लाख़ुन पए ज़र फिरता है
कुछ हाथ ब-जुज़ कुलूख़ आने का नहीं
कम-बख़्त फ़ुज़ूल गिर्द-ए-सर फिरता है
Ahmad Faraz
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दिल आया है क़यामत है मिरा दिल
ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स
बेदार नहीं कोई जहाँ ख़्वाब में है
ख़ूँ बहाने के हैं हज़ार तरीक़
कभी हँसाया कभी रुलाया कभी रुलाया कभी हँसाया
कब कोई फ़ुज़ूल हाथ मिलता है भला
मिस्ल-ए-हुबाब-ए-बहर न इतना उछल के चल
आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी
गौहर-ए-मक़्सद मिले गर चर्ख़-ए-मीनाई न हो
ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा
वो पोशीदा रखते हैं अपना तअ'ल्लुक़