कभी हँसाया कभी रुलाया कभी रुलाया कभी हँसाया
झिजक झिजक कर सिमट सिमट कर लिपट लिपट कर दबा दबा कर
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जो मकतब-ए-ईजाद में दाख़िल होगा
खुला है जल्वा-ए-पिन्हाँ से अज़-बस चाक वहशत का
ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा
दिल उचकेगी कि बिखरी है अड़ी है
सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था
शैख़ के माथे पे मिट्टी बरहमन के बर में बुत
पीरी की सपेदी है कि मरता हूँ मैं
नैरंगियाँ फ़लक की जभी हैं कि हों बहम
बेदार नहीं कोई जहाँ ख़्वाब में है
कब कोई फ़ुज़ूल हाथ मिलता है भला
हाँ जेहल तुम्हीं से रंग लाया फिर क्यूँ
इफ़्लास में क्यूँ टेक्स लगा रक्खा है