बेदार नहीं कोई जहाँ ख़्वाब में है
नैरंग अजब आलम-ए-असबाब में है
कुछ ख़्वाब में कुछ क़ैद में कुछ सहरा में
इक उम्र से क्या तफ़रक़ा अहबाब में है
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आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी
हाँ जेहल तुम्हीं से रंग लाया फिर क्यूँ
ग़म्ज़ा-ए-मा'शूक़ मुश्ताक़ों को दिखलाती है तेग़
ख़ूँ बहाने के हैं हज़ार तरीक़
लहू टपका किसी की आरज़ू से
ऐ तन-परस्त जामा-ए-सूरत कसीफ़ है
बदलने रंग सिखलाए जहाँ को
नैरंगियाँ फ़लक की जभी हैं कि हों बहम
पार दरिया-ए-शहादत से उतर जाते हैं सर
गौहर-ए-मक़्सद मिले गर चर्ख़-ए-मीनाई न हो
हज़ारों दिल मसल कर पैर से झुँझला के यूँ बोले
याद में ख़्वाब में तसव्वुर में