हज़ारों दिल मसल कर पैर से झुँझला के यूँ बोले
लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है
Javed Akhtar
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Gulzar
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Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
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आवारा-ए-हिर्स दर-ब-दर फिरता है
कभी हँसाया कभी रुलाया कभी रुलाया कभी हँसाया
ऐ तन-परस्त जामा-ए-सूरत कसीफ़ है
बेदार नहीं कोई जहाँ ख़्वाब में है
यार पहलू में निहाँ था मुझे मा'लूम न था
वो हटे आँख के आगे से तो बस सूरत-ए-अक्स
चराग़-ए-हुस्न है रौशन किसी का
कब कोई फ़ुज़ूल हाथ मिलता है भला
दिल आया है क़यामत है मिरा दिल
जो मकतब-ए-ईजाद में दाख़िल होगा
याद में ख़्वाब में तसव्वुर में
वो पोशीदा रखते हैं अपना तअ'ल्लुक़