हवा-ए-वहशत दिल ले उड़ी कहाँ से कहाँ
पड़ी है दूर ज़मीं गर्द-ए-कारवाँ की तरह
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(689) Peoples Rate This
शैख़ के माथे पे मिट्टी बरहमन के बर में बुत
ये मैं कहूँगा फ़लक पे जा कर ज़मीं से आया हूँ तंग आ कर
अदाएँ ता-अबद बिखरी पड़ी हैं
आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी
लहू टपका किसी की आरज़ू से
सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था
गौहर-ए-मक़्सद मिले गर चर्ख़-ए-मीनाई न हो
ग़म्ज़ा-ए-मा'शूक़ मुश्ताक़ों को दिखलाती है तेग़
गरमी इमसाल किस क़यामत की पड़ी
वो पोशीदा रखते हैं अपना तअ'ल्लुक़
आवारा-ए-हिर्स दर-ब-दर फिरता है
चराग़-ए-हुस्न है रौशन किसी का