कब कोई फ़ुज़ूल हाथ मिलता है भला
मतलब कहीं इस तरह निकलता है भला
जब दाहने हाथ से गिरह खुल न सकी
कब बाएँ क़दम से काम चलता है भला
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वो पोशीदा रखते हैं अपना तअ'ल्लुक़
गरमी इमसाल किस क़यामत की पड़ी
नहीं ये आदमी का काम वाइ'ज़
ख़ूँ बहाने के हैं हज़ार तरीक़
बदलने रंग सिखलाए जहाँ को
आवारा-ए-हिर्स दर-ब-दर फिरता है
पार दरिया-ए-शहादत से उतर जाते हैं सर
नैरंगियाँ फ़लक की जभी हैं कि हों बहम
सच है कि जहाँ में सैर क्या क्या देखी
पीरी की सपेदी है कि मरता हूँ मैं
जो मकतब-ए-ईजाद में दाख़िल होगा