पीरी की सपेदी है कि मरता हूँ मैं
जूँ शम्अ' दम-ए-सुब्ह गुज़रता हूँ मैं
जन्नत की हवा भरी है सीने में 'बयाँ'
ठंडी ठंडी जो साँस भरता हूँ मैं
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कभी हँसाया कभी रुलाया कभी रुलाया कभी हँसाया
नहीं ये आदमी का काम वाइ'ज़
सच है कि जहाँ में सैर क्या क्या देखी
ये तासीर मोहब्बत है कि टपका
ग़म्ज़ा-ए-मा'शूक़ मुश्ताक़ों को दिखलाती है तेग़
ऐ तन-परस्त जामा-ए-सूरत कसीफ़ है
ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स
सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ
याद में ख़्वाब में तसव्वुर में
असरार जहाँ लतीफ़ा-ए-ग़ैबी हैं
शैख़ के माथे पे मिट्टी बरहमन के बर में बुत
दिल उचकेगी कि बिखरी है अड़ी है