मत तंग हो करे जो फ़लक तुझ को तंग-दस्त
आहिस्ता खींचिए जो दबे ज़ेर-ए-संग दस्त
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ऐ इश्क़ तू हर-चंद मिरा दुश्मन-ए-जाँ हो
सिपाह-ए-इशरत पे फ़ौज-ए-ग़म ने जो मिल के मरकब बहम उठाए
यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम
सैर में तेरी है बुलबुल बोस्ताँ बे-कार है
आवे जो नाज़ से मिरा वो बुत-ए-सीम-बर ब-बर
रुश्द-ए-बातिन की तलब है तो कर ऐ शैख़ वो काम
काबा तो संग-ओ-ख़िश्त से ऐ शैख़ मिल बना
देख आईना जो कहता है कि अल्लाह-रे मैं
अपनी मर्ज़ी तो ये है बंदा-ए-बुत हो रहिए
जो चश्म-ओ-दिल से चढ़ा दूँ नाले ब-आब-ए-अव्वल दोवम-ब-आतिश
नर्गिस-ए-मस्त तिरी जाए जो तुल बरसर-ए-गुल