देख आईना जो कहता है कि अल्लाह-रे मैं
उस का मैं देखने वाला हूँ 'बक़ा' वाह-रे मैं
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इश्क़ में बू है किबरियाई की
सिपाह-ए-इशरत पे फ़ौज-ए-ग़म ने जो मिल के मरकब बहम उठाए
नर्गिस-ए-मस्त तिरी जाए जो तुल बरसर-ए-गुल
अपनी मर्ज़ी तो ये है बंदा-ए-बुत हो रहिए
क्या तुझ को लिखूँ ख़त हरकत हाथ से गुम है
जब मेरे दिल जिगर की तिलिस्में बनाइयाँ
मुझे तो इश्क़ में अब ऐश-ओ-ग़म बराबर है
मत तंग हो करे जो फ़लक तुझ को तंग-दस्त
रह-रवाँ कहते हैं जिस को जरस-ए-महमिल है
ये रिंद दे गए लुक़्मा तुझे तो उज़्र न मान
छोड़ कर कूचा-ए-मय-ख़ाना तरफ़ मस्जिद के