देखा तो एक शो'ले से ऐ शैख़-ओ-बरहमन
रौशन हैं शम-ए-दैर ओ चराग़-ए-हरम बहम
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ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था
हाँ मियाँ सच है तुम्हारी तो बला ही जाने
सिपाह-ए-इशरत पे फ़ौज-ए-ग़म ने जो मिल के मरकब बहम उठाए
मेरी गो आह से जंगल न जले ख़ुश्क तो हो
दिला उठाइए हर तरह उस की चश्म का नाज़
सीखा जो क़लम से न-ए-ख़ाली का बजाना
ख़्वाहिश-ए-सूद थी सौदे में मोहब्बत के वले
क्या तुझ को लिखूँ ख़त हरकत हाथ से गुम है
जब मेरे दिल जिगर की तिलिस्में बनाइयाँ
बाँग-ए-तकबीर तो ऐसी है 'बक़ा' सीना-ख़राश
रंग में हम मस से बतर हो चुके