दिला उठाइए हर तरह उस की चश्म का नाज़
ज़माना ब तू न-साज़द तू बा ज़माना ब-साज़
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आवे जो नाज़ से मिरा वो बुत-ए-सीम-बर ब-बर
बाँग-ए-तकबीर तो ऐसी है 'बक़ा' सीना-ख़राश
है दिल में घर को शहर से सहरा में ले चलें
मुझे तो इश्क़ में अब ऐश-ओ-ग़म बराबर है
यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम
चश्म-ए-तर जाम दिल-ए-बादा-कशाँ है शीशा
सैर में तेरी है बुलबुल बोस्ताँ बे-कार है
रुश्द-ए-बातिन की तलब है तो कर ऐ शैख़ वो काम
सिपाह-ए-इशरत पे फ़ौज-ए-ग़म ने जो मिल के मरकब बहम उठाए
रह-रवाँ कहते हैं जिस को जरस-ए-महमिल है
जब मेरे दिल जिगर की तिलिस्में बनाइयाँ
सैलाब से आँखों के रहते हैं ख़राबे में