ओर Poetry (page 20)

चोब-ए-सहरा भी वहाँ रश्क-ए-समर कहलाए

अता शाद

चोब-ए-सहरा भी वहाँ रश्क-ए-समर कहलाए

अता शाद

जब भी हँसी की गर्द में चेहरा छुपा लिया

असलम कोलसरी

कहीं पे क़ुर्ब की लज़्ज़त का इक़्तिबास नहीं

असलम आज़ाद

कहीं पे क़ुर्ब की लज़्ज़त का इक़्तिबास नहीं

असलम आज़ाद

हर शख़्स इस हुजूम में तन्हा दिखाई दे

असलम अंसारी

दर्स-ए-आदाब-ए-जुनूँ याद दिलाने वाले

असलम अंसारी

वक़्त बे-वक़्त ये पोशाक मिरी ताक में है

आसिम वास्ती

वो बे-हुनर हूँ कि है ज़िंदगी वबाल मुझे

अासिफ़ जमाल

शायद मिरी निगाह में कोई शिगाफ़ था

अशअर नजमी

है कौन जिस से कि वादा ख़ता नहीं होता

अशहर हाशमी

बचपन तमाम बूढ़े सवालों में कट गया

असग़र मेहदी होश

बाग़ में फूल खिले मौसम-ए-सौदा आया

असीर लखनवी

मिरी हर साँस को सब नग़्मा-ए-महफ़िल समझते हैं

असर सहबाई

राहें धुआँ धुआँ हैं सफ़र गर्द गर्द है

असद रज़ा

तमाशा है कि सब आज़ाद क़ौमें

असद मुल्तानी

वक़्त इक दरिया है दरिया सब बहा ले जाएगा

असअ'द बदायुनी

मिरे लोग ख़ेमा-ए-सब्र में मिरे शहर गर्द-ए-मलाल में

असअ'द बदायुनी

शौक़-ए-आवारा दश्त-ओ-दर से है

अर्शी भोपाली

न सहरा है न अब दीवार-ओ-दर है

अर्शी भोपाली

मैं ख़ाक छानता हूँ आफ़्ताब देखता हूँ

अरशद महमूद नाशाद

ख़ाक-ए-सहरा तो बहुत दूर है ऐ वहशत-ए-दिल

अरशद कमाल

फ़िक्र सोई है सर-ए-शाम जगा दी जाए

अरशद कमाल

तिलाई रंग जानाँ का अगर मज़मून लिखूँ ख़त में

अरशद अली ख़ान क़लक़

परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का

अरशद अली ख़ान क़लक़

लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के

अरशद अली ख़ान क़लक़

डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में

अरशद अली ख़ान क़लक़

हज़ार हादसात-ए-ग़म रवाँ-दवाँ लिए हुए

अर्श सहबाई

दिए जलाए उम्मीदों ने दिल के गिर्द बहुत

अर्श मलसियानी

दिल-ए-फ़सुर्दा पे सौ बार ताज़गी आई

अर्श मलसियानी

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