घर Poetry (page 132)

होंकते दश्त में इक ग़म का समुंदर देखो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

गर्द-ए-फ़िराक़ ग़ाज़ा कश-ए-आइना न हो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

बहार बन के ख़िज़ाँ को न यूँ दिलासा दे

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

मिरी मैं जश्न-ए-शब-ए-मुनव्वर

अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत

रात है लोग घर में बैठे हैं

अब्दुल अहद साज़

नींद मिट्टी की महक सब्ज़े की ठंडक

अब्दुल अहद साज़

घर वाले मुझे घर पर देख के ख़ुश हैं और वो क्या जानें

अब्दुल अहद साज़

बाम-ओ-दर की रौशनी फिर क्यूँ बुलाती है मुझे

अब्दुल अहद साज़

नानी-अमाँ की वफ़ात पर एक नज़्म

अब्दुल अहद साज़

फ़साद के ब'अद

अब्दुल अहद साज़

आवाज़ के मोती

अब्दुल अहद साज़

सामेआ लज़्ज़त-ए-बयान-ज़दा

अब्दुल अहद साज़

मैं ने अपनी रूह को अपने तन से अलग कर रक्खा है

अब्दुल अहद साज़

लम्हा-ए-तख़्लीक़ बख़्शा उस ने मुझ को भीक में

अब्दुल अहद साज़

ख़ुद को क्यूँ जिस्म का ज़िंदानी करें

अब्दुल अहद साज़

ख़राब-ए-दर्द हुए ग़म-परस्तियों में रहे

अब्दुल अहद साज़

जो कुछ भी ये जहाँ की ज़माने की घर की है

अब्दुल अहद साज़

दूर से शहर-ए-फ़िक्र सुहाना लगता है

अब्दुल अहद साज़

बहुत मलूल बड़े शादमाँ गए हुए हैं

अब्दुल अहद साज़

अज़दवाजी ज़िंदगी भी और तिजारत भी अदब भी

अब्दुल अहद साज़

मुझ से तो दिल भी मोहब्बत में नहीं ख़र्च हुआ

अब्बास ताबिश

झोंके के साथ छत गई दस्तक के साथ दर गया

अब्बास ताबिश

फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता

अब्बास ताबिश

अभी तो घर में न बैठें कहो बुज़ुर्गों से

अब्बास ताबिश

उसे मैं ने नहीं देखा

अब्बास ताबिश

अभी उस की ज़रूरत थी

अब्बास ताबिश

ये वाहिमे भी अजब बाम-ओ-दर बनाते हैं

अब्बास ताबिश

ये किस के ख़ौफ़ का गलियों में ज़हर फैल गया

अब्बास ताबिश

ये अजब साअत-ए-रुख़्सत है कि डर लगता है

अब्बास ताबिश

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