घर Poetry (page 7)

उस का ख़याल दिल में घड़ी दो घड़ी रहे

ज़करिय़ा शाज़

मुझ तक निगाह आई जो वापस पलट गई

ज़करिय़ा शाज़

जब भी घर के अंदर देखने लगता हूँ

ज़करिय़ा शाज़

देखो घिर कर बादल आ भी सकता है

ज़करिय़ा शाज़

सौंप कर ख़ाना-ए-दिल ग़म को किधर जाते हो

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

लाए जब घर से तो बेहोश पड़ा था 'आरिफ़'

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

उस पे करना मिरे नालों ने असर छोड़ दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

न आए सामने मेरे अगर नहीं आता

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

हर घड़ी चलती है तलवार तिरे कूचे में

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

अच्छा हुआ कि दम शब-ए-हिज्राँ निकल गया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

इल्ज़ाम बता कौन मिरे सर नहीं आया

ज़ाहिदुल हक़

क़तरा-ए-आब को कब तक मिरी धरती तरसे

ज़ाहिदा ज़ैदी

किसी मंज़र के पस-मंज़र में जा कर

ज़ाहिद शम्सी

आजिज़ी को चलन किए हुए हैं

ज़ाहिद शम्सी

फ़सील-ए-जिस्म गिरा कर बिखर न जाऊँ मैं

ज़ाहिद नवेद

ज़ख़्मी ख़्वाबों की तीसरी दुनिया

ज़ाहिद इमरोज़

हम इज़ाफ़ी मिट्टी से बने

ज़ाहिद इमरोज़

घर से निकले देर हुई है घर को लौट चलें

ज़ाहिद हसन चुग़ताई

उसी की धुन में कहीं नक़्श पा गया है मिरा

ज़ाहिद फ़ारानी

कई दिलों में पड़ी इस से शोर-ओ-शर की तरह

ज़ाहिद फ़ारानी

ज़ुल्फ़-ए-ख़मदार में नूर-ए-रुख़-ए-ज़ेबा देखो

ज़ाहिद चौधरी

चला हूँ घर से मैं अहवाल-ए-दिल सुनाने को

ज़ाहिद चौधरी

चल दिया वो उस तरह मुझ को परेशाँ छोड़ कर

ज़ाहिद चौधरी

कुछ यक़ीं रहने दिया कुछ वाहिमा रहने दिया

ज़ाहिद अाफ़ाक

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

हर गुल-ए-ताज़ा हमारे हाथ पर बैअत करे

ज़हीर सिद्दीक़ी

ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के

ज़हीर रहमती

ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के

ज़हीर रहमती

बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी

ज़हीर रहमती

बर्क़-ए-ज़माना दूर थी लेकिन मिशअल-ए-ख़ाना दूर न थी

ज़हीर काश्मीरी

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