घर Poetry (page 6)

जंग के दिनों में

ज़ीशान साहिल

जगह

ज़ीशान साहिल

हँसती हुई लड़की

ज़ीशान साहिल

फ़ाइरिंग

ज़ीशान साहिल

ईमेल

ज़ीशान साहिल

एक मोहब्बत

ज़ीशान साहिल

दूसरा आसमान

ज़ीशान साहिल

आँसू की वजह

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

किस क़दर महदूद कर देता है ग़म इंसान को

ज़ीशान साहिल

इस दश्त-ए-बे-पनाह की हद पर भी ख़ुश नहीं

ज़ीशान साहिल

सर उठाया मज़हबी दीवार पर पटका हुआ

ज़िशान इलाही

ग्लैडिएटर

ज़ीशान हैदर

ये इश्क़ इक इम्तिहान तो ले मैं पास कर लूँ

ज़ीशान साजिद

बुतान-ए-हिन्द मिरे दिल में हैं दर आए हुए

ज़ेबा

अंदर अंदर खोखले हो जाते हैं घर

ज़ेब ग़ौरी

मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या

ज़ेब ग़ौरी

हवा में उड़ता कोई ख़ंजर जाता है

ज़ेब ग़ौरी

बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है

ज़ेब ग़ौरी

गुल-पोश बाम-ओ-दर हैं मगर घर में कुछ नहीं

ज़ौक़ी मुज़फ्फ़र नगरी

क़ैस कहता था यही फ़िक्र है दिन-रात मुझे

ज़रीफ़ लखनवी

महशरिस्तान-ए-जुनूँ में दिल-ए-नाकाम आया

ज़रीफ़ लखनवी

करेंगे सब ये दा'वा नक़्द-ए-दिल जो हार बैठे हैं

ज़रीफ़ लखनवी

उस शाम को जब रूठ के में घर से चला था

ज़मीर काज़मी

नज़र में कैसा मंज़र बस गया है

ज़मान कंजाही

ख़याल-ओ-ख़्वाब में डूबी दीवार-ओ-दर बनाती हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

हिज्र का ये कर्ब सारा बे-असर हो जाएगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

इश्क़ में तेरे जंगल भी घर लगते हैं

ज़किया ग़ज़ल

सिमटे हुए जज़्बों को बिखरने नहीं देता

ज़की तारिक़

जब भी घर के अंदर देखने लगता हूँ

ज़करिय़ा शाज़

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