सौंप कर ख़ाना-ए-दिल ग़म को किधर जाते हो
फिर न पाओगे अगर उस ने ये घर छोड़ दिया
Rahat Indori
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(743) Peoples Rate This
तुम्हारी रह का रहा हम को हर तरफ़ धोका
न आए सामने मेरे अगर नहीं आता
आप को ख़ून के आँसू ही रुलाना होगा
वो पर्दा-नशीनी की रिआयत है तुम्हारी
वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर
बीच में है मेरे उस के तू ही ऐ आह-ए-हज़ीं
न पर्दा खोलियो ऐ इश्क़ ग़म में तू मेरा
क़ाइल भला हों नामा-बरी में सबा के ख़ाक
हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं
हर घड़ी चलती है तलवार तिरे कूचे में
इस दर पे मुझे यार मचलने नहीं देते
हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया