गाय Poetry (page 10)

ज़ोहद और रिंदी

अल्लामा इक़बाल

ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही

अल्लामा इक़बाल

तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना

अल्लामा इक़बाल

गर्म-ए-फ़ुग़ाँ है जरस उठ कि गया क़ाफ़िला

अल्लामा इक़बाल

जब पियारा गिला सुनाता है

अलीमुल्लाह

पहले भी कौन साथ था

अली वजदान

नज़्म तकमील

अलीना इतरत

हर बुत यहाँ टूटे हुए पत्थर की तरह है

अख़तर इमाम रिज़वी

बजा कि दुश्मन-ए-जाँ शहर-ए-जाँ के बाहर है

अख़्तर होशियारपुरी

कीजिए किस किस से आख़िर ना-शनासी का गिला

अख़तर बस्तवी

सज़ा है किस के लिए और जज़ा है किस के लिए

अकबर अली खान अर्शी जादह

दीवार याद आ गई दर याद आ गया

अजमल सिराज

दोस्त जब दिल सा आश्ना ही नहीं

ऐश देहलवी

दिया नसीब में नहीं सितारा बख़्त में नहीं

अहमद शहरयार

पाबंदी

अहमद नदीम क़ासमी

साँस लेना भी सज़ा लगता है

अहमद नदीम क़ासमी

वही उन की सतीज़ा-कारी है

अहमद मुश्ताक़

किस शय पे यहाँ वक़्त का साया नहीं होता

अहमद मुश्ताक़

किस रक़्स-ए-जान-आे-तन में मिरा दिल नहीं रहा

अहमद मुश्ताक़

क़िबला-ए-आब-ओ-गिल तुम्हीं तो हो

अहमद हुसैन माइल

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे

अहमद फ़राज़

वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है

अहमद फ़राज़

भली सी एक शक्ल थी

अहमद फ़राज़

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे

अहमद फ़राज़

नज़र बुझी तो करिश्मे भी रोज़-ओ-शब के गए

अहमद फ़राज़

मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का

अहमद फ़राज़

कशीदा सर से तवक़्क़ो अबस झुकाव की थी

अहमद फ़राज़

कहा था किस ने कि अहद-ए-वफ़ा करो उस से

अहमद फ़राज़

जिस ने तुझे ख़ल्वत में भी तन्हा नहीं देखा

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

याद में तेरी जहाँ को भूलता जाता हूँ मैं

आग़ा हश्र काश्मीरी

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