गाय Poetry (page 7)

करने गए थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला

ग़ालिब

जम्अ करते हो क्यूँ रक़ीबों को

ग़ालिब

जब तवक़्क़ो ही उठ गई 'ग़ालिब'

ग़ालिब

वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो

ग़ालिब

शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है

ग़ालिब

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए

ग़ालिब

मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त

ग़ालिब

लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती

ग़ालिब

इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई

ग़ालिब

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था

ग़ालिब

हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या

ग़ालिब

घर हमारा जो न रोते भी तो वीराँ होता

ग़ालिब

गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है

ग़ालिब

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ

ग़ालिब

तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है

फ़िराक़ गोरखपुरी

है जो ख़ामोश बुत-ए-होश-रुबा मेरे बाद

फ़ज़ल हुसैन साबिर

तुझ से दिल में जो गिला था वो न लाए लब पर

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

शिकवा हम तुझ से भला तेज़ हवा क्या करते

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

वो अपनी ज़ात में गुम था नहीं खुला मिरे साथ

फ़रताश सय्यद

वो अपनी ज़ात में गुम था नहीं खुला मेरे साथ

फ़रताश सय्यद

कभी बे-नियाज़-ए-मख़्ज़न कभी दुश्मन-ए-किनारा

फ़ारूक़ बाँसपारी

बिछड़ना मुझ से तो ख़्वाबों में सिलसिला रखना

फ़ारूक़ बख़्शी

हमारे कमरे में पत्तियों की महक ने

फरीहा नक़वी

रोज़-ए-जज़ा गिला तो क्या शुक्र-ए-सितम ही बन पड़ा

फ़ानी बदायुनी

मुझ को मिरे नसीब ने रोज़-ए-अज़ल से क्या दिया

फ़ानी बदायुनी

मर के टूटा है कहीं सिलसिला-क़ैद-ए-हयात

फ़ानी बदायुनी

किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला

फ़ानी बदायुनी

बेदाद के ख़ूगर थे फ़रियाद तो क्या करते

फ़ानी बदायुनी

ऐ मौत तुझ पे उम्र-ए-अबद का मदार है

फ़ानी बदायुनी

किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

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