गाय Poetry (page 4)

ब-क़द्र-ए-हौसला कोई कहीं कोई कहीं तक है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

अब वो सौदा नहीं दीवानों में

सैफ़ुद्दीन सैफ़

अब क्या गिला करें कि मुक़द्दर में कुछ न था

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम

साहिर लुधियानवी

हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं

साहिर लुधियानवी

काँटे तो ख़ैर काँटे हैं इस का गिला ही क्या

साग़र सिद्दीक़ी

मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया

साग़र सिद्दीक़ी

रोना मुझे ख़िज़ाँ का नहीं कुछ मगर 'शमीम'

सफ़िया शमीम

वो हसरत-ए-बहार न तूफ़ान-ए-ज़िंदगी

सफ़िया शमीम

पहले वो क़ैद-ए-मर्ग से मुझ को रिहा करे

सईद अख़्तर

जो ख़्वाब मेरे नहीं थे मैं उन को देखता था

साबिर वसीम

इदराक ही मुहाल है ख़्वाब-ओ-ख़याल का

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है

सबा अकबराबादी

ये जमाल क्या ये जलाल क्या ये उरूज क्या ये ज़वाल क्या

सादुल्लाह शाह

फिर कोई हादिसा हुआ ही नहीं

रूही कंजाही

मर कर अरे वाइज़ कोई ज़िंदा नहीं होता

रियाज़ ख़ैराबादी

दर्द हो तो दवा करे कोई

रियाज़ ख़ैराबादी

वक़्त ख़ुश-ख़ुश काटने का मशवरा देते हुए

रियाज़ मजीद

निशान क़ाफ़ला-दर-क़ाफ़ला रहेगा मिरा

रियाज़ मजीद

अब के मिले तो हम दोनों ही

रेनू नय्यर

रब्त-ए-पिन्हाँ की सदाक़त है न मिलना तेरा

रविश सिद्दीक़ी

न जाने कब बसर हुए न जाने कब गुज़र गए

रशक खलीली

अब क्या गिला कि रूह को खिलने नहीं दिया

राशिद मुफ़्ती

तुझ से वहशत में भी ग़ाफ़िल कब तिरा दीवाना था

रशीद रामपुरी

छुट गए हम जो असीर-ए-ग़म-ए-हिज्राँ हो कर

रशीद रामपुरी

आप दिल जा कर जो ज़ख़्मी हो तो मिज़्गाँ क्या करे

रशीद लखनवी

सब की आँखें तो खुली हैं देखता कोई नहीं

राणा गन्नौरी

अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा

राना आमिर लियाक़त

ज़रा ज़रा सी बात पर वो मुझ से बद-गुमाँ रहे

रमेश कँवल

मुझे कैफ़-ए-हिज्र अज़ीज़ है तू ज़र-ए-विसाल समेट ले

राम रियाज़

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